Wednesday 22 January 2020

CAA NRC

मैं आज अपनी बात संविधान की प्रस्तावना से सुरू करूंगा,,
हमने बहुत लंबा सफर तय किया है जिसकी भविष्यवाणी कभी किसी ने नहीं की थी, और जो भविष्यवाणी की गई थी वो आज तक तो साबित नहीं हुई है, देश हर बार उस भविष्यवाणी को नकारता ठुकराता रहा है, हर बार बच निकालने की कोशिश की है, लेकिन आज हालात तेजी से बदल रहे है, CAA और NRC को लेकिन जिस तरह सरकार जिद पर अड़ी है वो खतरनाक है, इसे समझने के लिए आपको पूरे देश की समझ होनी बहुत जरूरी है, साथ इन 70 सालों में भाषा, नश्ल, रंग, जाति, धर्म, सीमा, के आधार पर न जाने कितनी लड़ाइयाँ लड़ी गई है, पूर्वोत्तर के राज्यों आज भी बिना सुलझे विवादों के साथ अपनी लड़ाई लड़ रहे है, तमिल भाषा का संघर्ष देखा है, हमने जातिवाद का खूनी संघर्ष भी देखा है, हमने मंदिर मस्जिद के नाम पर हजारो निर्दोष लोगो का कत्लेआम भी देखा है, आज भी हम पूर्वोत्तर के कई लोगों को नेपाली कहते है, हमारा देश हमारी समझ से परे है, इस बात का ख्याल अपने दिमाग बैठा लेना चाहिए, शायद ही कोई देश होगा जिसमे इतनी विविधताएँ है जिसे वहाँ के लोग आज तक पूरी तरह से समझ नहीं पाये है, और हम आज उसे एक रंग में रंग देना चाहते है, क्या ये संभव है ? जिसे आप आज तक समझ ही नहीं पाये आप उसे अपने हिसाब से ढाल लेने चाहते है, मुझे उन लोगों की संकुचित सोच पर तरस आता है जो इसे हिन्दू राष्ट्र के रूप में देखना चाहते है, अगर ये पिटारा एक बार खुला तो इस तरह के हजारों बेबुनियाद मसले अपना सिर उठाने लगेंगे, फिर एक अंतहीन झगड़ों की सुरूवात होगी, जो सिर्फ संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ होने की वजह से अभी तक चुप है . क्या यह कानूनी हिन्दुओ को छोड़ सभी के लिए होता तो, तब भी क्या इसे समर्थन करने वाले इसका समर्थन करते, मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ तब भी इतनी ही तादात में विरोध होता और तर्क भी संवैधानिक दिये जाते ,,,
अब बात करते है CAA, यानी नागरिक संशोधन अधिनियम 2019 की, मेरा पहला सवाल है क्या इसे लाने के सरकार ने संविधान की प्रस्तवाना भी नहीं पढ़ी या यह सरकार उसे मानती ही नहीं है, किसी इंसान की पहचान धर्म के आधार पर नहीं की जा सकती, फिर हम पीड़ितों की पहचान धर्म के आधार पर कैसे कर सकते है, ये बेहद आमनवीय है, जो देश के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है,  जब हम गर्व से कहते है वासुदेव कुटुम्बकम तो इस तरह के फैसले किस आधार पर लिए गए और इसका समर्थन किस आधार पर किया जा सकता है, हम कोई धर्म के आधार पर राष्ट्र नहीं हम एक लोकतान्त्रिक धर्मनिरपेक्षा राष्ट्र है, जिसके कुछ मानवीय आधार है, कुछ लोगों का कहना है के मुसलमानो के लिए बहुत से देश है वो वहाँ जा सकते है, तो क्या इस आधार पर अमेरिका या योरोपीय देश जिसमे ईसाई बहुसंख्यक है वो कहा दें के हिन्दु जहां बहुतसंख्यक वो वहाँ जाए, और ट्रम्प जैसे लोग ये कर भी सकते है तब भी आपकी यही प्रतिकृया होगी ? हम आखिर इस तरह के मुद्दो पर क्यो उलझ रहे है,
 CAA को आखिर लाने की क्या जरूरत आन पड़ी, पहले भी लोगों को नागरिकता दी जाती रही है इसका अवधारणा क्या है, अलग से बिल पास करा लेने की जरूरत क्यो आन पड़ी है, क्या यह किसी धर्म विशेष को कोई संदेश देने की जरूरी थी यह सिर्फ हिन्दू मुस्लिम फसाद खड़ा करने की कोशिश, या जो हिन्दू राष्ट्र की बेबुनियाद अवधारणा खड़ी की गई है उसकी तरह एक और कदम है , या हिन्दू समुदाय को खुश करने के लिए ये सब हो रहा है ,
देश के प्रधानमंत्री कह रहे है NRC नहीं आ रहा है, लेकिन देश के गृहमंत्री बार बार ये कह रहे है NRC आ रहा है, ये बात उन्होने देश की संसद में भी कही है और न्यूज़ चैनलों में भी ये बात बार बार दोहराई गई है, फिर प्रधानमंत्री ये बात आखिर क्यो कहा रहे है, CAA का विरोध और तीखा इसलिए भी हो जाता है क्योकि गृहमंत्री ने ये साफ कहा है के NRC आयेगा, तो क्या पहले मुसलमान छोड़ सभी को नागरिकता दी जाएगी और फिर बचेंगे  मुसलमान जिन्हे NRC के जरिये देश से बाहर का रास्ता दिखा दिया जायाएगा, ये एक भयानक तस्वीर है जिसे पूरा होते हुये,शायद ही इस देश का एक सच्चा नागरिक देख सकने की हिम्मत रखता हो, ये एक ऐसी विकृत तस्वीर है जिसे इस देश की संसद अपनी दीवार पर नहीं सजा सकती है, अगर मान लेते है आप NRC लाने जा रहे है तो क्या आप आर्थिक रूप से इतने सस्क्त है के आप लाखों करोड़ रुपया इसके लिए खर्च कर सकते है,आपने असम में 1288 करोड़ खर्च कर दिये और नतीजा भी नहीं निकला, आपकी आर्थिक विकास दर क्या चल रही है, इसकी जानकारी है आपको। चलिये फिर मान लेते है आपने तमाम विकास कार्य रोककर NRC पूरी कर ली और करोड़ो लोगों की आपने छटनी कर दी  , फिर आप इन लोगों का करेंगे क्या ? क्या इन्हे बंगाल की खाड़ी में फेक देंगे या इन्हे करोड़ो खर्च कर डिटेन्शन सेंटर में रखेंगे, जिनका पालन पोषण आपको ही करना होगा, क्योकि बांगलादेश से आपने साफ कह दिया है NRC का असर उन पर नहीं पड़ेगा है , फिर आप इन लोगों का करेंगे क्या ,,मैं ये सब कल्पना करते हुये बहुत विचलित हो रहा हूँ, लेकिन सोचा एक बार आपकी नजरों से भी देखा जाए ....
चलिये जब आप ये सब कर रहे होंगे और करोड़ो लोगों को देश से बाहर करने की तैयारी करेंगे तो क्या लोग चुप चाप बाहर निकल जाएंगे ? आप एक विस्फोटक स्थिति में लाकर देश को खड़ा कर देंगे, जिसे मैं गृहयुद्ध का नाम दूँगा, मुझे बताएं इससे क्या हासिल होगा, और अगर आप ये नहीं करना चाह रहे है तो देश के गृहमंत्री साफ करें के हम NRC नहीं लाएँगे , कभी किसी को CAA से आपत्ति नहीं रही है, क्योकि सताये हुये लोगों को गले लगाना सबसे बड़ा धर्म है, लेकिन अगर आप लोगों की पहचान धर्म के आधार पर करके उन्हे चिन्हित करेंगे तब ये घोर अनर्थ होगा, जिसे आने वाली पीढ़ी कभी माफ नहीं करेगी, पूरा विश्व आज हमे देख रहा है हम किस तरह गलत चीजों का समर्थन करने के लिए भी सड़कों पर उतरे है, किस तरह बेशर्मी से सरकार इस देश के मानवीय मूल्यों की हत्या कर रही है, ये देश हर उस व्यक्ति का है जो इस सरकार को वोट देकर उन्हे कुछ शक्तियाँ दी है ,लेकिन अगर उन शक्तियों का दुरुपयोग सरकार करेगी तो वो शक्तियों जनता सड़कों पर उतरकर उनसे छीन भी सकती है, हम इस देश को कालंकित नहीं होने दे सकते है, 

Thursday 26 September 2019

कब तक

हम आज उस मुहाने पर खड़े हैं जहां गांधी की प्राथमिका और भी बढ़ जाती है, गांधी उतने ही जरूरी ही जितने वो है, हम गांधी के पीछे तो चल सकते है लेकिन उनसे आंगे बढ़ निकलने के लिए हमे ईमानदारी से उनके पथ पर चलना होगा , जिस सामाजिक चेतना की बात गांधी ज़िंदगी भर करते रहे है वो चेतना आज भी उसी तरह अचेत पड़ी है , हम गांधी को कितना जान पाये आज तक ! इसका उदाहरण शिवपुरी की घटना से मिलता है, सामाजिक विघटन कितना कम हुई है,
गांधी एक विराम का नाम, एक सहनशीलता ,,एक सालीनता , सत्याग्रह का नाम है, अहिंसा का नाम है , ये वो शख्स था जिसने शब्दों के अर्थ बदल दिये , हमेशा हमेशा के लिए, हम आज जब अहिंसा को सुनते है तो एक शब्द सुनाई देता है और वो शब्द है "गांधी " |
गांधी ने दलित वर्ग के लिए एक शब्द और रचा था वो था "हरिजन" ईश्वर का एक रूप या ईश्वर की संतान, लेकिन इस रूप को कुरूप आज तक किया जा रहा है, हरिजन नाम शायद इस विश्वास से दिया गया था के हम धर्म के नाम पर उन्हे बख्स दें , कमसेकम उन्हे इंसान तो मान ही सकेंगे , जिस अहंकार दंभ का निर्माण सदियों पहले हुआ था वो आज भी बदस्तूर जारी है , न जाने कितने मासूमों को अपनी कुर्बानी देनी पड़ेगी, गांधी की बात में इसलिए बार बार कर रहा हूँ क्योकि गांधी के नाम पर आजकल देश में झाड़ू चल रही है , कई बार लगता है ये एक सनक है सत्ता की, जो हर दिन एक नया करतब दिखाती है, अरबों रुपया का बंदर बाँट चल रहा है कागजों में शौचालय बन रहे है, या जो बन रहे है वो एक औपचारिकता मात्र है, बड़े बड़े विज्ञापन करते हुये उद्योगपतियों की जेबें गर्म की जा रही है, नेताओ की व्यवहार तो और भी शर्मनाक है ,पहले कचरा फैलाया जा रहा है फिर कैमरे के सामने उसे साफ किया जा रहा है,वही सफाई कर्मचारियों की तंख्वाह के लिए पैसा नहीं होता, न जाने कितने सफाई कर्मचारी सीवर को साफ करते हुये मौत का शिकार हो जाते है, वही उनके पीछे उनका परिवार गरीबी की कोख में ज़िंदगी भर घुटता रहता है, कब उसका नया जन्म होगा, कब उसे समाज में जीने के बराबर अधिकार मिलेंगे, कब तक उसकी साँसों में गंदी बस्तियों की दुर्गंध उसके जीवन को नरक की उपधी देती रहेगी , तब तक उसके कानो में जातिसूचक शब्दों का जहर भरा जाएगा जो समूचे समाज को एक दिन नष्ट कर देगा, न जाने कब उसकी देह पवित्र होगी, कब तक वो प्रेम के हाथों बिकेंगे , कब तक सभ्य समाज अपने दिल में भरी सदियों की नफरत को उन गंदी बस्तियों में फेकेंगे और उन्हे गले लगाएंगे ,,,,,,,
कब तक !